Dilli, बड़ी रफ़्तार है

बड़ी रफ़्तार है तेरे शहर में

हर इक ठहराव पे गुस्सा निकलता है
बड़ी रफ़्तार से
हर इक तकरार पे चलते हैं खंजर
बड़ी रफ़्तार से

कभी गर भीड़ में रफ़्तार धीमी पड़ गयी तो
कोई चिल्लाता है फ़ौरन से,भइ
साइड को हो ले दिखाई को ना देता
पलट के आती है गाली बड़ी रफ़्तार से

कभी पीले से कपडों से दुप्पट्टा जैसे सरका
तभी झोंके से आई एक सीटी
बड़ी रफ़्तार से
चिपक के एक फब्ती कस दी किसने
मिली बेशर्म आँखें फिर
बड़ी रफ़्तार से

दिलाया याद सबको कौन हैं वो,नाम क्या है
दिया ठुल्ले को सौ का नोट
क्या रफ़्तार से
जो बच कर आँखों से छुपना हो मुमकिन
तो मारी केडी क्या रफ़्तार से

अगर भूले से आँखें मिल गयी तो
किया इनकार क्या रफ्तार से
जो उसने ज़ोर डाला सच का जालिम
दुहाई दी तो क्या रफ़्तार से

जो देखा सामने कमज़ोर कोई
दबाया उसको किस रफ़्तार से
जो देखा सामने भारी सा कोई
दबाया सच को भी रफ़्तार से

ये रफ़्तार तेरी है न मेरी
ये न सच है न कोई झूठ ही है
ये है रफ़्तार अब इस ज़िन्दगी की
ये है रफ़्तार तेरे इस शहर की

बड़ी रफ़्तार है तेरे शहर में
बहोत डर लगता ही तेरे शहर से

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