Dhruv (Gappu)
May 17, 2020 Leave a comment
Before Dhruv becomes old enough to ask why bhaiya has a poem on this blog, but he doesn’t- an old one written on the day I held him first –
वो पूछेंगे की कौन हो तुम
कह देना
मैं गप्पू हूं
गप्पू
वो गाल में होता है ना
वो वाला गुप्पु
पापा के कंधों पर सोता रहने वाला
मम्मा की गोदी में हंसने रोने वाला
भैया दिन है तो रात हूँ मैं
उसकी हर अधूरी बात हूँ मैं
किसी का सपना किसी की जी लेने की चाहत
जैसे आसमान में उड़ती पतंग
या किसी के दबे पाँव चलने की आहट
कभी ऊँगली पकड़ता हूँ
कभी राह दिखाने वाला ध्रुव तारा
कभी आरोह, कभी अवरोह
कभी आपने में छुपाने वाला अँधेरा
कभी आँचल में समेत लूँ , वो उजियारा
कहना
मैं गप्पू हूँ , गप्पू
मेरा नाम सुन के चेहरे पे मुस्कराहट आती है
सूखे होंठों पे हंसी
गीली आँखों में चमक
और ठहरे लफ़्ज़ों में थरथराहट आती है
गप्पू गप्पें भी हांकते हैं
तोतली बोतली आवाज़ों में
कह देना
मेले दोस्त बनोगे तो कहानी भी छुनाऊँगा
मगर याद रहे
मेरे साथ मेरी कहानी सुन के
तुम भी थोड़े गप्पू हो जाओगे
मेरी उँगलियों के घेरे में
तुम अपनी नयी तस्वीर बनाओगे
गप्पू का मतलब मत समझाना गप्पू
वर्ण सब जल जाएंगे,
पूछेंगे
सिर्फ तुम क्यों गप्पू? मैं भी गप्पू?
तुम हंस कर केह देना
हाँ, तुम, मैं , हम सब गप्पू
बस मेरी ठिठियाती हंसी में जुड़ जाओ
फिर सब कुछ बस गप्पू ही गप्पू
The missus does not want me destroying his name as well, but what do you do when you have kids who give you the feeling of laddu and gappu!