Hindi…

ऐसा क्यों लगता है मुझको
जैसे रात सदा रहती हो
पर्दों के पीछे छिप छिप के
दिन से आँख मिचोली खेले
दुनिया पर हंसती रहती हो
जैसे रात सदा रहती हो

ये इक प्रयास है जीमेल के हिंदी वातावरण का उपयोग करना सीखने के लिए. कई बार ऐसा हुआ है की मातृभाषा में सहेजा हुआ सवाल आंग्ल भाषा में अनुवाद के दौरान अपना स्वाद खो देता है. कई बार ऐसा भी होता है की आंग्ल प्रतिलिपि में हिंदी का संवाद ऐसा लगता है जैसे किसी प्रवासी अथवा परदेसी के होठों से बूँद बूँद हो के गिरता बॉलीवुड का एक डाइलोग. शायद ऐसा करते करते वापस वही हिंदी भाषा वापस जीवन में आ जाये जो मेरी थे, मेरी है, लेकिन मौजूगा वक़्त की जरूरतों में दबी कुचली शायद कल मेरी ना रहे.

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