Hindi…
September 23, 2011 Leave a comment
ऐसा क्यों लगता है मुझको
जैसे रात सदा रहती हो
पर्दों के पीछे छिप छिप के
दिन से आँख मिचोली खेले
दुनिया पर हंसती रहती हो
जैसे रात सदा रहती हो
ये इक प्रयास है जीमेल के हिंदी वातावरण का उपयोग करना सीखने के लिए. कई बार ऐसा हुआ है की मातृभाषा में सहेजा हुआ सवाल आंग्ल भाषा में अनुवाद के दौरान अपना स्वाद खो देता है. कई बार ऐसा भी होता है की आंग्ल प्रतिलिपि में हिंदी का संवाद ऐसा लगता है जैसे किसी प्रवासी अथवा परदेसी के होठों से बूँद बूँद हो के गिरता बॉलीवुड का एक डाइलोग. शायद ऐसा करते करते वापस वही हिंदी भाषा वापस जीवन में आ जाये जो मेरी थे, मेरी है, लेकिन मौजूगा वक़्त की जरूरतों में दबी कुचली शायद कल मेरी ना रहे.