RIP Dadaji… We will miss you
April 28, 2011 4 Comments
For my dadaji.. who left us on the evening of April 26th, 2011.
आज फिर बूँद एक टूट गयी
आज फिर खो दिया है कुछ मैंने
जैसे सदियाँ गुज़र गयीं पल में
जैसे सब ख़त्म हुआ, फिर भी अधूरा है कुछ
अभी कल शाम की ही बात है ये
हाथ जोड़े खड़ी थी एक नज़र
रात का इंतज़ार करते हुए
एक झूठा करार करते हुए
मैं कहीं जाऊं क्यों, इस कोने में रहने दो मुझे
मेरा क्या है मैं बस इस रात का मुसाफिर हूँ
बस ज़रा देखने दो आज भरी आँखों से
क्या पता मुझको मिलें या न मिलें कल ये पल
फिर उसी कमरे के अँधेरे में
अब कोई स्विच टटोलता भी नहीं
पान की डाली वो सूनी होगी
और कोई शाम को टहलेगा नहीं
आज माँ मेरी परेशान ना होगी
पर बहोत दर्द होगा आँखों में
आज ये सोचना नहीं होगा
कौन से जूस से दिल बहलेगा
और क्या सब्जी बनेगी घर पर
और मसाले ये ज्यादा तेज़ तो नहीं
देखो, वो आये नहा कर या नहीं
देखो, वो धोती, वो कुर्ता, वो नाश्ता वो चाय
ना जाने कितनी ही ऐसी वैसी बातें लेकर
ज़िन्दगी का वो एक रूटीन गया
सर पे साए की तरह रहता था जो
आज वो पेड़ किसी झील में बहता होगा
कैसे भूलेंगे वो एक मंज़र
जो जभी आँखों से गुज़रा ना था
कितने सालों से देखा है उनको
अपने पैरों पे शाम करते हुए
आज कंधों पे उठे, आखिरी घर जाते हैं
आप जैसे भी कभी, इस तरह कमज़ोर नज़र आते हैं
कल जो देखा था वो सिमटा हुआ, सकुचाया बदन
और किसी कोने में फूला हुआ, बिखरा सा बदन
हाथ नीले पड़े थे और था ठंडा सा बदन
एक मुट्ठी में बंधा आग पे लेटा सा बदन
कैसे भूलूंगा वो एक मंज़र
कैसे जायेगी साँसों में बसी ये राख की बू
कौन बोलेगा थैंक यू वो घर पहुँचने पर
कौन बोलेगा वो सॉरी, वो हाथ जोड़े हुए
कैसे बदलेंगे फिर वो एक नियम सालों से जीते हैं जिसे
आज फिर बूँद एक टूट गयी, आज फिर खो दिया है कुछ मैंने