विरासत (Inheritance)

उसे अकेले चलने की आदत नहीं थी। मज़ा नहीं आता था ऐसी वाक में। हमेशा ऐसा लगता था मानो बैकग्राउंड में ज़ी हॉरर शो का वो भद्दा सा संगीत बज रहा हो। हॉरर देखने वालों की तादाद दो तरह की होती है। एक जिन्हें वो भूत, वो खून, वो डरावने चेहरे देखने में कुछ मज़ा सा आता है, और दुसरे वो, जिन्हें ये सब एक कॉमेडी की तरह लगता है। वैसे इन दोनों ही पक्षों को ये संगीत कॉमेडी ही लगता है। मगर उसके दिमाग में सुनसान से ज्यादा तन्हाई का संगीत जी हॉरर वाला ही होता था। उसने कभी विश्लेषण नहीं किया था की क्यों ऐसा होता है। ऐसा भी नहीं था की उसे जी हॉरर शो बहुत पसंद था। बस एक संयुक्त एहसास था। और कुछ भी नहीं। कम से कम दूसरों को तो ऐसा ही लगता था।

वो भी एक ऐसी ही रात थी। बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ जब वो अकेले बस स्टॉप से अपने घर की तरफ आ रही थे, तो एक खौफ की तरह उसे कुछ पैरों की आहट अपने पीछे महसूस हुई। पलट कर देखने की जगह उसने अपने कदमो की रफ़्तार बढ़ा दी। लेकिन आहटों ने पीछा ना छोड़ा। कुछ देर तक तेज चलते हुए क़दमों से उसने अपना रोज़ का रास्ता बदलने की कोशिश की। आहटें फिर भी साथ थी। उसने सोचा की वो चिल्लाये। मगर किसे? और क्यों? कुछ हुआ तो था नहीं। और मानो की ये सब उसका वहम हो? बचपन से सब ने सिखाया था की अगर डर से आँखें मिलाओ और डर को तुम्हारा डर दिख जाए, तो डर तुम पर हावी होने लागता है। येही सोच कर उसने पीछे पलट कर ये देखना अभी तक जरूरी नहीं समझा था। और साथ में दो सामाजिक डर अलग से – अगर कोई पीछे हुआ ही नहीं, और मैंने शोर मचाया तो लोग क्या कहेंगे? और अगर कोई पीछे है भी और मान लो की वो कोई यहीं का रहने वाला हो और मैंने शोर मचाया  तो बिना मतलब की फजीहत।

अब वो हांफने लगी थी। अभी भी घर कम से कम 100 मीटर दूर था। रौशनी थी। और भी घरों में रौशनी थी। उसे यकीं था की अगर वो चिल्लाएगी तो कोई न कोई निचे उतर ही आएगा। मगर जितने देर में कोई नीचे आएगा, क्या वो काफी होगा? अगर कोई उसे अगवा कर के ले गया? और इससे भी सुनसान जगह एक लोहे के सरिये से जख्मी शरीर की तरह छोड़ गया? सेलफोन कम से कम हाथ में निकाल लेती हूँ। मगर चलते चलते पर्स को टटोलने में रफ़्तार धीमी पड़ने लगी। दर से उसने फिर अपने कदम तेज़ कर दिए।

इन रास्तों पर चलते हुए अब 15 साल हो गए थे। और अब तक वो सोचती आयी थी की शायद ज़िन्दगी इन्ही रास्तों पर कट जायेगी।

उसने अपने मन को सांत्वना देने के लिए कुछ बोलना चाहा। मगर सूखे हुए गले से कोई आवाज़ नहीं निकली।

शहर कभी भी सुरक्षित नहीं महसूस होता था उसे। मगर कभी इतना डरावना भी नहीं की शाम के अँधेरे में उसे साए दिखाए दें। वो कॉमेडी क्लब में थी। लेकिन गए कुछ अरसे से उसे हॉरर शो डरावने लगने लगे थे।

काम्प्लेक्स के दरवाज़े पर पहुँच कर, जब उसे बिल्डिंग के गार्ड्स दिखाई देने लगे तो उसने हिम्मत जोड़ी और पीछे मुड़ के देखा। वहां कोई नहीं था।

वहाँ अँधेरे में उसे छह हैवानों की दी हुई वो विरासत दिखी जिसकी हिफाज़त में मुल्क के सारे सियासतदान लगे हुए थे।

उसने पर्स से फ़ोन निकाल, और अपने विश्वास और हिम्मत के लिए उस लिफ़ाफ़े को फिर से छू कर देखा, जिसमे उसका भविष्य था। किसी और शहर की किसी और गली में।